रायपुर ….
आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है। इस मौके पर देश के लिए कुर्बानी देने वाले वीर सपूतों के शौर्य को याद किया जा रहा है। इन्हीं वीर सपूतों में से एक हैं कारगिल युद्ध में दोनों पैर, एक हाथ खो चुके योद्धा दीपचंद। योद्धा दीपचंद 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध की यादों को ताजा करते हुए बताते हैं कि वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस से प्रेरणा लेकर सेना में भर्ती हुए थे। जम्मू काश्मीर में तोपची के रूप में सेवा दी। वहां की भाषा सीखकर वहीं ड्यूटी की। मुठभेड़ में आठ आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा। उनके साथी अवतार सिंह बलिदान हुए। इसके बाद कारगिल युद्ध में हजारों तोपों के बीच साथियों के साथ निडरता से लड़े।
टाइगर हिल पर 17 हजार फीट की ऊंचाई पर कड़ाके की ठंड में सांस लेने में परेशानी होती थी। कई दिनों तक युद्ध के दौरान जूते फट चुके थे, रस्सी बांधकर लड़े। मेरे साथी मुकेश ने गोलीबारी के बाद मेरे हाथों में दम तोड़ा। साथी की गर्दन उड़ गई पर सांस चल रही थी। युद्ध करते समय हमने वादा किया था कि जो बचेगा वह दूसरे के परिवारवालों से अवश्य मिलेगा। जब सैनिक तोपों के साथ हमारी सहायता को पहुंचे तब कारगिल पर फतह पाई और साथियों की मौत का बदला लेकर तिरंगा लहराया। इस युद्ध में गोलीबारी से गंभीर रूप से घायल होने पर दोनों पैर, एक हाथ खो दिए। खुशी है कि मैं देश की आन, बान, शान की रक्षा में योगदान दे सका। युवाओं से विनती है कि वे देश के लिए मर मिटने का जज्बा लेकर सेना में भर्ती हों।