उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ‘नागरिक आपूर्ति निगम’ घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार के एक मामले को छत्तीसगढ़ से बाहर स्थानांतरित करने की मांग वाली प्रवर्तन निदेशालय (ED) की याचिका पर सुनवाई करेगी।
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ को अवगत कराया कि ईडी की याचिका को न्यायमूर्ति एम आर शाह की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आज फिर सूचीबद्ध किया गया।
प्रधान न्यायाधीश ने उन परिस्थितियों के बारे में बताया जिनके तहत मामला सोमवार को फिर से उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया और कहा कि तीन-न्यायाधीशों की पीठ जिसमें वह, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट शामिल हैं, सुनवाई करेगी।
CJE ने कहा, “मामले की सुनवाई क्योंकि सीजेआई ललित (अब सेवानिवृत्त) और दो सहयोगियों द्वारा की गई थी, मैं इसे अपने और दो सहयोगियों – न्यायमूर्ति भट और न्यायमूर्ति रस्तोगी द्वारा सुनवाई के लिए निर्देशित कर सकता हूं। मैं इसे किसी दिन रखूंगा।”
छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में न्यायमूर्ति शाह की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा था कि वह मामले को आगे न बढ़ाए क्योंकि इसे तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए और फिर सिब्बल द्वारा प्रधान न्यायाधीश की पीठ के समक्ष इसका उल्लेख किया गया।
इसके बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किसी राजनीतिक मामले में कोई आदेश मुकदमेबाजी करने वाले पक्ष को पसंद नहीं आने पर शीर्ष न्यायपालिका और न्यायाधीशों को बदनाम करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर खेद व्यक्त किया।
ईडी की याचिका को पहले तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश यू. यू. ललित, (अब सेवानिवृत्त) के पास समय की कमी के चलते, सीजेआई, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ द्वारा वाद सूची से हटा दिया गया था।
मामले को फिर न्यायमूर्ति शाह और न्यायमूर्ति कोहली की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।
कथित घोटाला फरवरी 2015 में सामने आया, जब रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार सत्ता में थी।
एसीबी ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रभावी कामकाज का दायित्व संभालने वाले नागरिक अपूर्ति निगम (एनएएन) के कार्यालयों पर छापेमारी की और कुल 3.64 करोड़ रुपये की बेहिसाब नकदी जब्त की गई थी।
प्राथमिकी में चावल और अन्य खाद्यान्नों की खरीद और परिवहन में व्यापक स्तर पर भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाया गया, जिसमें राज्य नागरिक आपूर्ति निगम, रायपुर से संबंधित अधिकारी और अन्य शामिल थे।