जबलपुर-
सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ निर्देश दिया है कि आरक्षण का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, इसलिए मनमानी नहीं होनी चाहिए। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ ने मेडिकल कालेज में सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति में मनमाना आरक्षण निरस्त कर दिया। इसी के साथ नये सिरे से बिना अनुचित आरक्षण लागू किए नियुक्ति करने के निर्देश जारी कर दिए।
याचिकाकर्ता डा. हेमलता गुप्ता की ओर से ग्वालियर के अधिवक्ता राजेंद्र श्रीवास्तव व जबलपुर के अधिवक्ता नीलेश कोटेचा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि ग्वालियर के गजराजा मेडिकल कालेज में सहायक प्राध्यापक फिजियोलाजी के पद पर नियुक्ति के लिए एक विज्ञापन जारी किया गया। इसमें यह शर्त लागू कर दी गई कि केवल महाविद्यालय में कार्यरत चिकित्सक ही नियुक्ति के पात्र होंगे, इसीलिए याचिकाकर्ता जो कि इस मेडिकल कालेज के बाहर की थीं, उनका आवेदन निरस्त हो गया। चूंकि मेडिकल कालेज ने शत-प्रतिशत आरक्षण लागू करने की गलती की है, अत: सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का साफ तौर पर उल्लंघन हुआ है।
संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत भी यह रवैया अनुचित है। सभी सीटें केवल उसी कालेज के आवेदकों के लिए निर्धारित करना ठीक नहीं। इससे याचिकाकर्ता सहित अन्य बाहरी आवेदकों का हक मारा गया है। इसलिए याचिकाकर्ता का निरस्त किया गया आवेदन भी स्वीकार होना चाहिए। इसके बाद साक्षात्कार प्रक्रिया में जो पात्र पाया जाए, उसे नियुक्ति दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने तर्क से सहमत होकर मनमाना आरक्षण निरस्त करते हुए नये सिरे से प्रक्रिया अपनाने की व्यवस्था दे दी।