छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के गीदम से महज 10 किलोमीटर दूर नागफनी नामक ग्राम स्थित है। नागफनी में नाग देवता का प्राचीन काल में बना मंदिर है। यहां परंपरा के अनुसार नागपंचमी के दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। नागवंशी राजाओं द्वारा स्थापित भव्य इस मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है। साथ ही नाग की अद्भुत कथाएं चर्चित है। लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है।
मंदिर में स्थापित हैं 11वीं शताब्दी की मूर्तियां…
स्थानीय ग्रामीणों की माने तो यह मंदिर नागवंशी राजाओं के समय में बनाया गया था, जिसे आज भी ग्रामीणों ने सहेज कर रखा है। हर वर्ष नागपंचमी के अवसर पर इस नाग मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। जानकारी के मुताबिक नाग मंदिर का मुख्य दिशा पश्चिम की ओर है एवं 11वीं व 12वीं शताब्दियों की मूर्तियां हैं। मंदिर में प्रवेश द्वार के बायीं ओर शिलाखंड में नरसिम्हा की मूर्ति एवं दायीं ओर शिलाखंड में नृत्यांगना की मूर्ति स्थापित है। सभी मूर्तियां लगभग 23 फीट ऊंची है। मंदिर के गर्भगृह में बायीं ओर नाग-नागिन की मूर्ति व दायीं ओर गणेश भगवान की मूर्ति व शिलाखंड में द्वारपाल की मूर्ति स्थापित है।
नागवंशी राजाओं ने बनवाया था मंदिर….
बताया जाता है कि बारसूर में नागवंश के पतन के बाद दक्षिण के नागवंशी राजाओं का राज्य था। नागवंश राजाओं ने अपने शासन काल में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया, उनमें से कुछ मंदिर आज भी अस्तित्व में हैं, जिनमें से एक गीदम बारसूर मार्ग में नागफनी नामक ग्राम में नाग देवता का मंदिर स्थित है। गीदम निवासी रज्जन गुप्ता ने बताया कि नागवंशी राजा महाराज जब भी युद्ध के लिये जाते थे, तो इस मंदिर में अपना मस्तक टेक पूजा-अर्चना कर जाते थे। रानियां नाग देवता के मंदिर में हर रोज विशेष पूजा-अर्चना करती थीं। नागवंशी राजाओं द्वारा बनाए गए इस मंदिर की अपनी एक अलग ही पहचान है, एक अलग ही विशेषता है। नागपंचमी के दिन यहां हर साल मेला लगता है। दूर-दूर से भारी संख्या में लोग यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं, नाग देवता को दूध चढ़ाया जाता है।