कुछ साल पहले जब हरियाणा की युवतियों ने पहलवानी में दमखम दिखाकर देश का नाम रोशन किया, तब राजधानी की युवतियों में भी पहलवानी का जज्बा जागा। युवतियों ने भी कुश्ती सीखना प्रारंभ किया। बीते कुछ सालों में राजधानी के विविध अखाड़ों में कुश्ती सीखने वाली युवतियों की संख्या बढ़ने लगी है। पिछले दो साल से कोरोना महामारी के चलते नागपंचमी पर कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन नहीं किया गया था। इस साल कुश्ती को लेकर पहलवानों में विशेष उत्साह है। युवाओं के साथ युवतियां भी कुश्ती में दमखम दिखाएंगी।
अखाड़े की मिट्टी से शिवलिंग बनाकर की जाएगी साज-सज्जा….
पुरानी बस्ती के 150 साल से अधिक पुराने दंतेश्वरी अखाड़ा में नागपंचमी पर अखाड़े की मिट्टी से शिवलिंग बनाकर साज-सज्जा की जाएगी। इस दिन अखाड़े के भीतर कुश्ती नहीं होती, बल्कि अखाड़े के बाहर खाली जगह पर गद्दे बिछाकर कुश्ती का आयोजन किया जाएगा। छोटे पहलवानों के साथ ही युवतियां भी कुश्ती में अपना दांवपेंच दिखाएंगी। कुश्ती देखने लिए पुरानी बस्ती के लोग पहुंचेंगे। यहां सुबह अखाड़े की मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजा-अर्चना के बाद कुश्ती का रंग जमेगा।
गुढ़ियारी में खुली कुश्ती प्रतियोगिता…..
श्री शंकर मंदिर सेवा समिति शुक्रवारी बाजार गुढ़ियारी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ स्तरीय खुली कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। दोपहर बाद होने वाली प्रतियोगिता में बच्चे, युवाओं के अलावा युवतियां भी भाग ले सकेंगी। इसमें रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, महासमुंद, धमतरी से पहलवानों ने भाग लेने सहमति जताई है। 11 हजार से लेकर 51 हजार रुपये तक का पुरस्कार विजेताओं को दिया जाएगा।
जैतूसाव मठ
पुराने अखाड़ों में पुरानी बस्ती के जैतूसाव मठ के समीप का अखाड़ा प्रदेशभर में प्रसिद्ध है। जैतूसाव मठ के अजय तिवारी ने बताया कि नागपंचमी पर दोपहर 12 बजे पूजा के बाद कुश्ती का आयोजन होगा। शाम तक कुश्ती में विविध वर्ग में पहलवान भिड़ेंगे।
कुश्ती से होता था मनोरंजन…..
गुढ़ियारी अखाड़ा से जुड़े तोरणलाल साहू बताते हैं कि वर्तमान दौर में आधुनिक जिम में युवा आकर्षक दिखने के लिए सिक्स पैक बाडी बनाते हैं, जबकि पहले के जमाने में स्वस्थ रहने के लिए अखाड़े में कसरत करके अपनी ताकत बढ़ाते थे। आज की तरह टीवी, मोबाइल का युग नहीं था। युवा अपना मनोरंजन कुश्ती के जरिए करते थे और गांव-गांव में प्रतियोगिता का आयोजन होता था। बाद में हजारों रुपये पुरस्कार और शील्ड प्रदान किया जाने लगा। हर अखाड़े की अपनी प्रतिष्ठा होती थी। कई बार पहलवान बराबरी पर होते थे और संयुक्त विजेताओं की घोषणा की जाती थी। अब कुश्ती का स्वरूप बदल गया है। मिट्टी की बजाय गद्दों में कुश्तियां होने लगी है। आज भी कुश्ती देखने हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है।